Oct 27, 2015

मोर


सारनाथ के धमेख स्तूप वाले मैदान में यह मोर अक्सर दिखता है।  मोर की सुंदरता उसके पंखों से अधिक बढ़ जाती है लेकिन इसके पंख लंबे नहीं हैं। यहाँ पत्थरों पर किसी ने बिखरा दिये हैं चिड़ियों के लिए चावल के दाने। उसी को देख आया है यहाँ। यह आज की तस्वीर है। इसे देख याद आया वर्षों पहले एक मोर की तस्वीर खींची थी जब वह मेरे घर की छत पर आया था। आम में टिकोरे लगे थे। वह तस्वीर भी दिखाता हूँ । 


इसके पंख कितने सुंदर हैं! 


Oct 24, 2015

वाह! बनारस। सुबह बनारस।


बालाजी मंदिर के सामने गंगा तट की एक मढ़ी जिस पर बैठ कर एक सूर्य की उपासना कर रहा  है तो दूसरा  संगीत की साधना। बांसुरी की मधुर धुन से जब ध्यान हटा तो याद आया कि यहीं कभी गूँजती थी भारत रत्न  स्व0 बिस्मिल्लाह खाँ की शहनाई। 


सूर्य की सुनहरी किरणें पड़तीं हैं तो घाटों की सुंदरता अचानक से बहुत बढ़ जाती है। यह ब्रह्मा घाट है। यहीं से जुड़ीं हैं आनंद की यादें । 


 सूर्योदय के समय गंगा स्नान का आनंद ही कुछ और है। 


Oct 22, 2015

साइकिल पर कमल



साइकिल पर रखे कमल के इन फूलों का संबंध बौद्ध तीर्थ यात्रियों से है। 

यहाँ के लोकल लड़कों से कमल का फूल खरीद कर ये तीर्थ यात्री सामने धर्मराजिका स्तूप के इर्द-गिर्द घूमेंगे और एक स्थान पर बैठकर पूजा अर्चना करेंगे।

Oct 21, 2015

खुशी

खुशी चलकर किसी के घर कभी यूँ ही नहीं आई 
   कि जिसने ज़ोर अजमाया उसी के साथ भरमाई ।  

खुशी की कामना कौन नहीं करता? सभी चाहते हैं कि खुशी मिले पर खुशी घर बैठे तो मिलती नहीं, कुछ प्रयत्न करना पड़ता है। खुशी के मायने भी सभी के लिए अलग-अलग होते हैं। कोई किसी को दुख देकर खुश होता है तो किसी को सुख देकर खुशी मिलते है। खुश रहने के अपने-अपने अंदाज हैं।  इन लोगों को सारनाथ में हिरणों और आवारा देसी कुत्तों को सुबह-सुबह ब्रेड खिलाने में आनंद आता है और मुझे इनकी तस्वीरें खींच कर आपको दिखाने में आनंद आ रहा है। आपको पढ़कर और इन चित्रों को देखकर आनंद न आया तो और भी तरीके हैं खुश रहने के। ज़ोर आजमाते रहेए, खुश रहिये।  





Oct 18, 2015

चाय

 प्रातः भ्रमण के बाद सुबह की कुल्हड़ वाली चाय का मजा ही कुछ और है।


Oct 13, 2015

माटी के लोग!

आज से प्रारम्भ हो रही है नवरात्रि। प्रातः भ्रमण के बाद याद आया कि एक माटी के पात्र की आवाशयकता है। कुछ दीये भी चाहिए।  वैसे तो बाज़ारों में खूब मिलते हैं मगर मन हुआ कोहरान बस्ती चला जाय। पता चला  सारनाथ रेलवे स्टेशन से 3-4 किमी की दूरी पर है कोहरान बस्ती। पहुँच गया उनके द्वार। नजदीक से देखा कैसे बनते हैं माटी के दिये। कैसे बनते हैं खिलौने। बड़े प्यार से मिला कुम्हार का एक परिवार। आनंद आ गया इनसे मिलकर। ईश्वर से प्रार्थना कि हे भगवान! प्लास्टिक के युग में बचा कर रखना हमारी माटी की थाती। हमेशा खुशहाल रहें ये माटी के लोग। तस्वीरें मोबाइल की हैं। खूबसूरत तो नहीं हैं पर इन चित्रों में आनंद ही आनंद है।